मुस्लिम धर्म का मत है कि उन्हें बनाने वाला.. उनका खुदा... बादलो की दुनिया के पार... किसी "सातवे आसमान" पर रहता है
देखा जाए तो... इस कल्पना के जन्म के पीछे का लॉजिक समझना उतना मुश्किल नहीं है !!!
.
पृथ्वी से देखने पर... बादलो से घिरा वायुमंडल एक आसमान अथवा लेयर प्रतीत होता है
Relative Motion के आधार पर चंद्रमा दुसरा आसमान अथवा लेयर
आसमान के बैकड्रॉप में तेजी से गति करने वाले पिंड जैसे मंगल अथवा शुक्र... तीसरा आसमान
सूर्य... चौथा आसमान
नजदीकी तारे और Constellations.. पांचवा आसमान
दूर दूर के सितारे... छठा आसमान
और जाहिर सी बात है.. अगले यानी सातवे आसमान पर किसी दिव्य शक्ति के मौजूद होने की कल्पना के पीछे... उन पुरातन इस्लामिक स्कोलर्स की गलती नहीं कही जा सकती
जो स्कोलर्स... हमेशा पृथ्वी पर से ही... आसमान की ऑब्जरवेशन तक सीमित थे !!!
.
पुरातन काल से ही मनुष्य... विशाल ब्रह्माण्ड के किसी कोने में तैर रहे एक छोटे से धुल मिटटी के टुकड़े पृथ्वी पर रहता आया है
They Had No Other Perspective To Look At Cosmos... Other Than Earth !!!
मैं कभी कभी सोचता हूँ कि... अगर मनुष्य पृथ्वी पर पैदा ना हो कर... ब्रह्माण्ड के किसी और ग्रह पर पैदा हुआ होता
तो... क्या ब्रह्माण्ड के बारे में हमारी समझ, हमारी ऑब्जरवेशन, साइंस अलग होती?
May Be.. For Example
एक लाख प्रकाश वर्ष में फैली इस विशालकाय आकाशगंगा "मिल्की वे" के एक बाहरी कोने "Orion" भुजा में हम इंसानो को प्रकृति ने हमारा आशियाना "पृथ्वी" प्रदान किया है
अगर मिल्की वे में हमारी पोजीशन... बाहर की ओर ना हो कर... अंदर की तरफ होती
तो शायद... रात को... हमारी पृथ्वी के आसमान में लाखो सूर्य एक साथ अपनी छटा बिखेरते
टेक्निकली... रात... कभी आती ही नहीं !!!
ना कोई नक्षत्र मंडल दिखाई देता
शायद... एस्ट्रोनॉमी और साइंस का जन्म ही नहीं हुआ होता
.
इस विषय में मेरी फ़ेवरिट फैंटसी... शुक्र यानी वीनस ग्रह को लेकर है
वीनस पर... जमीन से 45 किलोमीटर ऊपर तक... गहरे बादलो की धुंध छाई हुई है.. ये सघन वातावरण सूर्य से पहुचने वाली लाइट को इस प्रकार scatter करती है कि... जमीन पर रहने वाले के लिए... बादलो के पार की दुनिया का कोई दृश्य देख पाना संभव नहीं हो पाता
अगर... कभी कोई इंटेलीजेंट लाइफ जैसे इंसान... शुक्र ग्रह पर विकसित हो पाते
तो... वो कभी जान ही नहीं पाते
कि... उनकी इस छोटी सी दुनिया के ऊपर छाये इन बादलो के पार... एक 94 अरब प्रकाश वर्ष में फैला एक विशालकाय ब्रह्माण्ड भी मौजूद है
.
वीनस पर रहने वाले किसी भी मनुष्य को... आसमान में सूर्य उसी प्रकार "हल्का धुंधला मद्धिम रौशनी वाला धब्बा" प्रतीत होता... जिस प्रकार की मद्धिम रौशनी... समुद्र की गहराइयो में गोता लगाने वाले स्कूबा डाइवर्स को... ऊपर समुद्र की सतह पर देखने पर प्रतीत होती है !!
.
ये सोचना एक अद्भुत एहसास है कि अगर एक दिन वीनस पर रहने वाली कोई सभ्यता वैज्ञानिक तरक्की कर... किसी प्रकार उड़ना सीख जाती
तो एक ना एक दिन ऐसा अवश्य आता... जब वीनस के इतिहास में पहली बार उस सभ्यता का कोई साहसिक इंसान... बादलो की दुनिया को चीर कर... बादलो के पार जाने का हौसला दिखाता
और बादलो को चीर कर... जैसे ही वो इंसान... बादलो से बाहर कदम रखता
वैसे ही... वो एक रक्त जमा देने वाला नजारा अपनी आखो से देखता
वीनस की छोटी सी दुनिया के परे.. अरबो सूर्यो से दमकता... एक विशालकाय, अथाह ब्रह्माण्ड !!!
A Glorious Sky... Filled With Billions Of Suns & Galaxies !!!
94 अरब प्रकाश वर्ष में फैले इस विशाल ब्रह्माण्ड के सागर में.. पृथ्वी एक आइलैंड के समान है
जिस आई लैंड पर युगों युगों से रहते हुए... हम इस विशाल सागर को ना जाने कब से देखते आये है
कुछ सदियो से हमने इस सागर में उतर कर तैरने की कोशिश बेशक की है
एक वक़्त आएगा
जब "वर्महोल" अथवा "Alcubierre Device" जैसी चीजो की मदद से शायद.. हम इस ब्रह्माण्ड में तैरना सीख पायेगे
Who Knows... एक दिन ऐसा भी आएगा...
जब इस ब्रह्माण्ड के सागर में तैरता कोई इंसान... 47 अरब प्रकाश वर्ष की यात्रा कर के... ब्रह्माण्ड के उन सुदूर अंधेरे कोनो तक पहुच पायेगा... जिन कोनो के पार की दुनिया ने हमेशा इंसानो की कल्पनाओ को नयी उड़ाने दी है
और
शायद.. जैसे ही वो इंसान... उन कोनो को पार कर... एक नयी रौशनी में पहुचेगा
तो शायद... अगले ही पल उन आँखों को... उन इंसानी आँखों को कुछ ऐसा नजारा देखने को मिले
जो नजारा... उनका खून जमा दे !!!
एक ऐसा नजारा... जो युगों युगों से चली आ रही ब्रह्माण्ड की सभी मान्यताओ को ध्वस्त कर हमें एक ऐसी दुनिया का दीदार कराये
जिस दुनिया में... हर पल... असंख्य ब्रह्माण्ड जन्म लेते और नष्ट होते हो !!!
Something Which May Turn Out Our Huge Universe As A Tiny Fragile World... Among Billions Of Popping Up & Vanishing Down Worlds Every Moment In A Great Cosmic Ocean !!!
.
May Be...
Something Totally Out Of This World Is Waiting For Us...
Beyond The Darkest Edges Of This Vast Universe !!!! *******************************************************
देखा जाए तो... इस कल्पना के जन्म के पीछे का लॉजिक समझना उतना मुश्किल नहीं है !!!
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पृथ्वी से देखने पर... बादलो से घिरा वायुमंडल एक आसमान अथवा लेयर प्रतीत होता है
Relative Motion के आधार पर चंद्रमा दुसरा आसमान अथवा लेयर
आसमान के बैकड्रॉप में तेजी से गति करने वाले पिंड जैसे मंगल अथवा शुक्र... तीसरा आसमान
सूर्य... चौथा आसमान
नजदीकी तारे और Constellations.. पांचवा आसमान
दूर दूर के सितारे... छठा आसमान
और जाहिर सी बात है.. अगले यानी सातवे आसमान पर किसी दिव्य शक्ति के मौजूद होने की कल्पना के पीछे... उन पुरातन इस्लामिक स्कोलर्स की गलती नहीं कही जा सकती
जो स्कोलर्स... हमेशा पृथ्वी पर से ही... आसमान की ऑब्जरवेशन तक सीमित थे !!!
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पुरातन काल से ही मनुष्य... विशाल ब्रह्माण्ड के किसी कोने में तैर रहे एक छोटे से धुल मिटटी के टुकड़े पृथ्वी पर रहता आया है
They Had No Other Perspective To Look At Cosmos... Other Than Earth !!!
मैं कभी कभी सोचता हूँ कि... अगर मनुष्य पृथ्वी पर पैदा ना हो कर... ब्रह्माण्ड के किसी और ग्रह पर पैदा हुआ होता
तो... क्या ब्रह्माण्ड के बारे में हमारी समझ, हमारी ऑब्जरवेशन, साइंस अलग होती?
May Be.. For Example
एक लाख प्रकाश वर्ष में फैली इस विशालकाय आकाशगंगा "मिल्की वे" के एक बाहरी कोने "Orion" भुजा में हम इंसानो को प्रकृति ने हमारा आशियाना "पृथ्वी" प्रदान किया है
अगर मिल्की वे में हमारी पोजीशन... बाहर की ओर ना हो कर... अंदर की तरफ होती
तो शायद... रात को... हमारी पृथ्वी के आसमान में लाखो सूर्य एक साथ अपनी छटा बिखेरते
टेक्निकली... रात... कभी आती ही नहीं !!!
ना कोई नक्षत्र मंडल दिखाई देता
शायद... एस्ट्रोनॉमी और साइंस का जन्म ही नहीं हुआ होता
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इस विषय में मेरी फ़ेवरिट फैंटसी... शुक्र यानी वीनस ग्रह को लेकर है
वीनस पर... जमीन से 45 किलोमीटर ऊपर तक... गहरे बादलो की धुंध छाई हुई है.. ये सघन वातावरण सूर्य से पहुचने वाली लाइट को इस प्रकार scatter करती है कि... जमीन पर रहने वाले के लिए... बादलो के पार की दुनिया का कोई दृश्य देख पाना संभव नहीं हो पाता
अगर... कभी कोई इंटेलीजेंट लाइफ जैसे इंसान... शुक्र ग्रह पर विकसित हो पाते
तो... वो कभी जान ही नहीं पाते
कि... उनकी इस छोटी सी दुनिया के ऊपर छाये इन बादलो के पार... एक 94 अरब प्रकाश वर्ष में फैला एक विशालकाय ब्रह्माण्ड भी मौजूद है
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वीनस पर रहने वाले किसी भी मनुष्य को... आसमान में सूर्य उसी प्रकार "हल्का धुंधला मद्धिम रौशनी वाला धब्बा" प्रतीत होता... जिस प्रकार की मद्धिम रौशनी... समुद्र की गहराइयो में गोता लगाने वाले स्कूबा डाइवर्स को... ऊपर समुद्र की सतह पर देखने पर प्रतीत होती है !!
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ये सोचना एक अद्भुत एहसास है कि अगर एक दिन वीनस पर रहने वाली कोई सभ्यता वैज्ञानिक तरक्की कर... किसी प्रकार उड़ना सीख जाती
तो एक ना एक दिन ऐसा अवश्य आता... जब वीनस के इतिहास में पहली बार उस सभ्यता का कोई साहसिक इंसान... बादलो की दुनिया को चीर कर... बादलो के पार जाने का हौसला दिखाता
और बादलो को चीर कर... जैसे ही वो इंसान... बादलो से बाहर कदम रखता
वैसे ही... वो एक रक्त जमा देने वाला नजारा अपनी आखो से देखता
वीनस की छोटी सी दुनिया के परे.. अरबो सूर्यो से दमकता... एक विशालकाय, अथाह ब्रह्माण्ड !!!
A Glorious Sky... Filled With Billions Of Suns & Galaxies !!!
94 अरब प्रकाश वर्ष में फैले इस विशाल ब्रह्माण्ड के सागर में.. पृथ्वी एक आइलैंड के समान है
जिस आई लैंड पर युगों युगों से रहते हुए... हम इस विशाल सागर को ना जाने कब से देखते आये है
कुछ सदियो से हमने इस सागर में उतर कर तैरने की कोशिश बेशक की है
एक वक़्त आएगा
जब "वर्महोल" अथवा "Alcubierre Device" जैसी चीजो की मदद से शायद.. हम इस ब्रह्माण्ड में तैरना सीख पायेगे
Who Knows... एक दिन ऐसा भी आएगा...
जब इस ब्रह्माण्ड के सागर में तैरता कोई इंसान... 47 अरब प्रकाश वर्ष की यात्रा कर के... ब्रह्माण्ड के उन सुदूर अंधेरे कोनो तक पहुच पायेगा... जिन कोनो के पार की दुनिया ने हमेशा इंसानो की कल्पनाओ को नयी उड़ाने दी है
और
शायद.. जैसे ही वो इंसान... उन कोनो को पार कर... एक नयी रौशनी में पहुचेगा
तो शायद... अगले ही पल उन आँखों को... उन इंसानी आँखों को कुछ ऐसा नजारा देखने को मिले
जो नजारा... उनका खून जमा दे !!!
एक ऐसा नजारा... जो युगों युगों से चली आ रही ब्रह्माण्ड की सभी मान्यताओ को ध्वस्त कर हमें एक ऐसी दुनिया का दीदार कराये
जिस दुनिया में... हर पल... असंख्य ब्रह्माण्ड जन्म लेते और नष्ट होते हो !!!
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May Be...
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